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ज्येष्ठाङ्गबाहुहृत्कण्ठकटिपादनिवासिनीम् ॥७॥
रागद्वेषादिहन्त्रीं रविशशिनयनां राज्यदानप्रवीणाम् ।
Even though the specific intention or significance of this variation could range dependant on individual or cultural interpretations, it may possibly typically be recognized being an extended invocation of your merged Vitality of Lalita Tripurasundari.
ह्रींमन्त्रान्तैस्त्रिकूटैः स्थिरतरमतिभिर्धार्यमाणां ज्वलन्तीं
ह्रीं ह स क ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं स क ल ह्रीं
श्री-चक्रं शरणं व्रजामि सततं सर्वेष्ट-सिद्धि-प्रदम् ॥६॥
कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —
॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥
दुष्टानां दानवानां मदभरहरणा दुःखहन्त्री बुधानां
कामेश्यादिभिराज्ञयैव ललिता-देव्याः समुद्भासितं
यत्र श्रीत्रिपुर-मालिनी विजयते नित्यं निगर्भा स्तुता
सर्वोत्कृष्ट-वपुर्धराभिरभितो देवी समाभिर्जगत्
Celebrations like Lalita Jayanti highlight her importance, where rituals and offerings are made in her honor. The goddess's grace is believed to cleanse past sins and guide 1 in the direction of the more info last word intention of Moksha.
मन्त्रिण्या मेचकाङ्ग्या कुचभरनतया कोलमुख्या च सार्धं